Saturday, August 18, 2007

पहली बार

पहली बार
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जब पहली बार मिले थे तुम
हम भूल गये थे सारे ग़म
चुपके- से देखा था तुमको
डर था ना पकड़े जाए हम .

मन मे थी ली उमंगों ने किलकारी
तुम लगती थी कितनी प्यारी
तुम्हारी चंचल- सी काया
दिल को था कितना भाया .

जब देखी थी तेरी आँखें
दिल चाहा करलूँ इनसे बातें
किनती सुंदर, कितनी प्यारी
चंचल, चतुर और सुकुमारी .

तेरे बालों ने मोहा मेरा मन
हर लट लगती नंबर वन
जब उड़ते है तेरे गालों पे
कुछ करने को होता है मन .

क्यूं आज तरसता है ये दिल
क्यूं एक झलक भी है मुश्किल
जब खाई थी कसमें मिलके
फिर भी है क्यूं हम तन्हा दिल .

संजय.
23-December-2006

4 comments:

Govind said...

Sanjay bhai Hila dela ho......

Apne kavitapan ke kahan chhupaile rahu ho....

:)

Rupesh Kumar said...

wow man !! bade chhupe rustam nikle tum to bhai! kahaan chhupa ke rakha tha apne andar ke kavi ko itne din? :-)good stuff.. keep 'em coming

संजईया. said...

Govind bhai,
are ee enahi time paas ke lel bhai.
:)
protsahan ke lel dhanyawaad.

संजईया. said...

Are Rupesh bhai,
kaha ho bhai, aap to aise gaayab huye ki. baaki sab sunaaiye, kya chal raha hai life me.

Thanks for the compliment. Aap logo ka itna prtsahan mila hai to likhne ki koshish jaroor karoonga. :)